Anamika - 1 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | अनामिका - 1

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 55

    નિતુ : ૫૫ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુએ કેબિનમાં પ્રવેશ કર્યો તો વિદ્યા...

  • ભાગવત રહસ્ય - 124

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૪   બે માતાઓના આશીર્વાદ લઇ –માત્ર-પાંચ વર્ષનો...

  • ભીતરમન - 60 (અંતિમ ભાગ)

    હું ઝડપથી તૈયાર થઈ અને નીચે હોલમાં પહોંચ્યો હતો. સવારના સાત...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 14

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • ઉર્મિલા

    ખેડાપુર ગામ સુંદરતા અને શાંતીનું જીવંત ચિત્ર હતું. ચારેય તરફ...

Categories
Share

अनामिका - 1

सूरज एक सफल बिजनेसमैन था। वह अपनी मेहनत और लगन से शहर के सबसे प्रमुख उद्योगपतियों में गिना जाता था। मगर दौलत और शोहरत के इस सफर में भी एक खालीपन था, जिसे सिर्फ वह महसूस कर सकता था। उसकी जिंदगी की हलचलें अक्सर उसे थका देतीं, लेकिन जब भी वह थकता, उसे सुकून किताबों में मिलता।

सूरज को कविताओं का बेहद शौक था। व्यस्त जिंदगी से चुराए गए कुछ पल वह किताबों के साथ बिताता। शब्दों के बीच खो जाना उसे सुकून देता था। एक दिन, किसी मीटिंग के बाद, वह अपने पसंदीदा बुकस्टोर में गया। किताबों के रैक के बीच उसकी नजर एक पतली-सी किताब पर पड़ी। किताब का नाम था "अनकही बातें", और लेखक के नाम की जगह सिर्फ "अनामिका" लिखा था।

सूरज ने वह किताब उठाई। पहले पन्ने पर लिखा था:

"कुछ कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं,
कुछ बातें अनकही रह जाती हैं।"

यह पंक्तियाँ पढ़ते ही सूरज के दिल में अजीब-सा एहसास हुआ। वह वहाँ खड़े-खड़े किताब के कुछ पन्ने पलटने लगा। हर पन्ने पर लिखी कविताएँ उसे जैसे किसी और ही दुनिया में ले गईं। यह सिर्फ कविताएँ नहीं थीं; यह भावनाओं का ऐसा समंदर था, जिसमें वह डूब जाना चाहता था।

सूरज ने बिना वक्त गंवाए वह किताब खरीद ली। घर लौटते ही उसने उसे पढ़ना शुरू कर दिया। पूरी रात वह अनामिका की कविताओं में खोया रहा।

सूरज ने अनामिका की पहली किताब खत्म की, लेकिन उसकी भूख शांत नहीं हुई। वह अगली सुबह उसी बुकस्टोर पहुँचा और अनामिका की बाकी किताबें ढूँढने लगा। उसने उनकी सभी किताबें खरीदीं और हर एक को बड़े प्यार से पढ़ा।

सूरज की जिंदगी अब पूरी तरह बदल गई थी। बिजनेस की भागदौड़ के बीच भी उसके पास अनामिका की कविताओं के लिए वक्त होता। हर कविता उसे अनामिका के और करीब ले जाती।

सूरज को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि अनामिका कौन है। क्या वह उसकी उम्र की होगी? या उससे बड़ी? क्या वह साधारण लड़की होगी या किसी बड़े परिवार से? इन सवालों के जवाब सूरज के पास नहीं थे।

उसने कई बार किताबों के आखिरी पन्नों पर लेखक की जानकारी ढूँढी, लेकिन हर बार उसे सिर्फ इतना ही मिलता:

"मेरे शब्द मेरी पहचान हैं। चेहरा मायने नहीं रखता।"

यह पढ़कर सूरज एक गहरी सोच में डूब जाता। उसने अब तक अनामिका का एक चेहरा अपनी कल्पना में गढ़ लिया था। लंबे बाल, गहरी आँखें, और ऐसा व्यक्तित्व जो उसकी कविताओं की तरह सादगी और गहराई से भरा हो।

सूरज को यह समझने में देर नहीं लगी कि वह अनामिका की कविताओं से नहीं, बल्कि खुद अनामिका से प्यार करने लगा है। वह जानता था कि यह प्यार अजीब है—उसने उसे कभी देखा नहीं, उससे कभी बात नहीं की, फिर भी उसका हर शब्द सूरज के दिल को छू जाता।

कभी-कभी वह खुद से पूछता, "क्या मैं उसे कभी देख पाऊँगा? क्या वह मेरी कल्पना जैसी होगी?" लेकिन अगले ही पल वह खुद को रोक लेता। उसके लिए यह जरूरी नहीं था कि वह अनामिका से मिले। उसके शब्द ही उसके लिए काफी थे।

दिन, हफ्ते और महीने गुजरते गए। सूरज की जिंदगी अब दो हिस्सों में बंट चुकी थी—एक उसका बिजनेस और दूसरी अनामिका की कविताएँ। वह अपनी दुनिया में खुश था, लेकिन अनामिका के बारे में जानने की इच्छा कभी-कभी उसे बेचैन कर देती।

एक दिन, उसने अनामिका की एक नई किताब खरीदी। किताब के पहले पन्ने पर लिखा था:

"शब्द कभी खत्म नहीं होते,
कहानी कभी पूरी नहीं होती।"

यह पंक्तियाँ पढ़कर सूरज मुस्कुरा दिया। उसने अपनी बेचैनी को शांत कर लिया। उसे लगा, शायद उसकी कहानी भी ऐसी ही है—अधूरी, लेकिन खूबसूरत।

सूरज ने अनामिका की नई किताब का आखिरी पन्ना बंद किया और गहरी सांस ली। उसकी कविताएँ हमेशा सूरज को भावनाओं के ऐसे सागर में ले जाती थीं, जहां से लौटना मुश्किल होता। लेकिन इस बार, किताब पढ़ने के बाद सूरज के दिल में एक अजीब-सी खामोशी छा गई थी।

अनामिका के शब्द जैसे उसके भीतर की गहराई में उतरते जा रहे थे। उसने खिड़की से बाहर देखा, और उसके मन में अनगिनत सवाल उठे।

"अनामिका कौन हो सकती है?" उसने खुद से पूछा।
"क्या वह वाकई वैसी है जैसी मैं सोचता हूँ? या उससे भी ज्यादा रहस्यमयी?"

किताब को ध्यान से रखते हुए उसने एक आखिरी बार उसकी कविताओं के बारे में सोचा।

"क्या अनामिका के शब्दों में छिपी इस दुनिया को मैं कभी पूरी तरह समझ पाऊँगा?"

सूरज को इसका जवाब नहीं पता था। लेकिन एक बात तय थी—उसकी कविताएँ सूरज को हर बार एक नई राह पर ले जाती थीं।

सूरज ने एक गहरी सांस ली और किताब को अपनी टेबल पर रख दिया। अनामिका के शब्द उसके दिल में गूँजते रहे।

क्या सूरज अपनी जिंदगी में अनामिका के शब्दों के मायने समझ पाएगा? क्या अनामिका का यह रहस्य उसकी जिंदगी का हिस्सा बना रहेगा? जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले भाग का।